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Thursday 26 December 2013

.......कि अब पतंग कटी

मुझे गांव में रहना हमेशा सुकून दे जाता हैं.…।
यहाँ कि मिट्टी में अपनेपन का एक अलग ही एहसास होता हैं
जिसे मैं कभी भी शहर की बड़ी-२ इमारतों में भी नहीं पा सकती
खैर यह सब बातें गांव वाले चैप्टर में लिखेंगे किसी रोज :-))
अभी छत पर टहलते हुए मेरी नजरें पियूष पर जा टिकी थी
वो मुझसे बेखबर था और बस अपनी पतंगबाज़ी में मस्त था
तो मैंने उसे छेड़ना ठीक नहीं समझा और बस अपने विचारों की
दुनिया में लौट आयी.……
मुझे लगा सच इस दुनिया में केवल दो ही चीज़ें सबसे प्यारी हैं
नींद और बचपन बस :-))
नींद को  मैंने मेरे हिसाब से चुना हैं क्यूंकि
मेरे हर मर्ज का इलाज मुझे नींद में ही नजर आता हैं सो.……
बचपन……… ज्यादा अच्छे से जी नहीं पायी ना इसलिए
अच्छा लगता हैं
बड़े होने की जिद्द और समझदारी के आगोश में ही
शायद कहीं खो गया था :-))
खैर अब अपनी सारी हरकतें बच्चों से कहीं कम नहीं होती हैं :-)
वैसे बात पियूष की थी सो.…-
4th कक्षा में पढ़ता हैं,पर अभी छुटियां हैं तो
बुक्स की तरफ मुँह भी नहीं करता हैं
उसका पूरा दिन बिना कुछ खाये,बिना किसी अपने के
यू ही बच्चों के साथ पतंग उड़ाने में कब बीत जाता
हैं शायद उसे खुद भी नहीं पता :(
ना किसी से आगे निकलने की जिद्द और
ना किसी से पीछे रहने का डर
ना दुनियादारी की कोई फिकर और
ना ही झूठे रिश्तों की उलझन
हां अभी पतंग उड़ाते हुए उसे एक डर सता रहा हैं कि
कहीं मेरी पतंग कट ना जाये बिल्कुल
जिंदगी की साँसों की तरह :-)
कल तो मैंने उसे यू ही डरा दिया था कि
आज पापाजी को बोलूंगी कि तुझे पढ़ाये
वो मेरे पास आया और बोला जब तक पापा आयेंगे तब तक मैं सो जाऊगा
पागल बच्चा:-))
एक दिन मैंने बेवजह पियूष के दो चांटे लगा दिये थे
खैर बाद में मुझे मेरा अहम् बहुत अच्छे से नजर आ रहा था
for that day really i m so sorry piyush.....:-))
मैं दुआ करती हू कि तुम्हारी पतंग कभी ना कटे :-))

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