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Tuesday 10 December 2013

एक था वो भी दिन

कल रात को एक अजीब सी कश्मकश थी
सर थोडा भारी सा ,मन बहूत हल्का
बस बहूत देर तक यू ही करवटें बदलती रही
पर नींद ने बहुत देर तक मेरे दरवाज़े पर दस्तक नहीं दी थी
शायद रास्ता भटक गयी होगी बिल्कुल मेरी तरह :-))
तभी तुम बहुत याद आये
एक अजीब सी बेचैनी ने आ घेरा था मुझे
तुम ठीक तो हो ना ,खुश तो हो ना ??????
या कही फिर से !!!!!!!!
नहीं   नहीं मैं भी ना पता नहीं क्या-२ सोच लेती हू ????
फिर सोचा तुम्हें तो कभी मैं याद आती ही नहीं हू 
तो फिर यू ही खामखां बेवजह वक़्त बेवक़्त मैं तुम्हारी फिक्र क्यूँ कर बैठती हू ??????
हर वो अपना-बेगाना सा पल याद आया
तुम्हारा रूठना,मेरा मनाना तुम्हें याद है ना वो सारे पल ?????
अपना रिश्ता एक अनाम सा जिसकी जड़े हर रिश्ते से ज्यादा गहरी थी
पर उसके टूटने पर पता चला कि मैं एक कमजोर तना तो
तुम तूफान थे :-((
मैं भी भला तुम्हारे आगे कब तक डटी रह सकती थी
मुझे तो टूटकर बिखरना ही था
फिर चाहे वो तेरी बाहें थी या मिट्ठी :-))
बातें ख़त्म झगड़े शुरू
दूरियों का एहसास हो गया था मुझे पर
यह इतनी और यू बढ़ेगी मुझे पता ना था :-))
सिवाय तुम्हारी यादों के मेरे पास कुछ भी तो ना बचा था
फिर एक दिन हैरान परेशां सी उठी मैं
मैंने अपने आपको सम्भाला सोचा किसी एक के लिये सारी दुनिया से मुँह मोड़ लेना अच्छा नहीं ;-((
कड़वाहटों से जिंदगी को कब तक काटती रहुंगी ?????
या तो जब हम थे तब मैं नहीं थी ,या फिर अब मैं नहीं हू :-))
जो सब -कुछ बिखर गया था उसे समेटा 
फिर खुद को भी आखिर मैं भी तो एक लिपटा हुआ सामान मात्र ही तो रह गयी थी :-))
सच थका कोई एक ही था पर हम दोनों ही हार गये :-)))
क्यों ,कब ,कैसे और किसके लिये कुछ पता नहीं???????

"कुछ शरारतें है तुम्हारी,कुछ नादानियां हैं मेरी। … 
यह तो वक़्त ही बड़ा बेरहम निकला वरना ना बेवफा तुम थे और ना मैं :-))"

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