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Wednesday 30 April 2014

कुछ नए-पुराने दोस्त,....

कल लिखेंगे.............



7th मई 2014 -
उफ्फ अप्रैल भी खत्म हो ही गया ……
खैर हे भगवान कभी -कभार यह क्या हो जाता हैं 
आपको पता हैं ना मेरी कितनीं पोस्ट्स पेंडिंग हैं 
माफी चाहती हू कि वक़्त पर यह पोस्ट अपडेट नहीं कर पायी थी 
एक्चुअली मेरी तो कोई गलती थी ही नहीं 
मैं टाइप करके 1 st मई को ही अपडेट करने वाली थी कि………
खैर छोड़िए आप नहीं समझेंगे 
हां तो बात कर रहे थे कुछ नये पुराने दोस्तोँ की 
हुह नये दोस्तों से ना मुझे कोई उम्मीदें हैँ ओर ना ही कोई आशा 
और ना ही पुराने दोस्तों से कोई गिला-शिकवा हैं :-)
मैंने बचपन में कभी दोस्त नहीं बनाये या 
यू कह लीजिए तब मुझसे क़ोई दोस्ती करना ही नहीं चाहते थे 
कुछ बड़ी हुई कि मेरी किस्मत मुझे तेजास्थली में ले गयी 
तेजास्थली मिली ज़िन्दगी मिल गयी 
रिश्तों का मतलब समझ में आने लगा 
अपनापन क्या होता हैं यह जाना ,दुर जाने के बाद भी अपनों को दिल में जगह देना सीखा 
फिर बाहरवीं के बाद कुछ वक़्त रिंकू के साथ बिताया 
सच में उससे हर रिश्ते को सहजने की हिम्मत लेना चाहती हू :-)
किस्मत ने फ़िर अपना खेल खेला ओर ले गयी फ़िर से एक नये कॉलेज में 
जहां मेरे अपनों के चेहरे व नाम सब-कुछ बदल गये थे 
पर कमला नेहरू की कुड़ियों से मिलने के बाद मेरे सारे गिले-शिकवे दुर हो गये 
जिंदगी की सांसें उनके बिना अधूरी लगती थी 
यहाँ खेल खिलाड़ी सब बदल गये फ़िर भी खेलने में मजा आ रहा था 
पर कहते हैं ज्यादा प्रेम हानिकारक होता हैं 
यकीं मानिए अति हर चीज़ की बुरी होती हैं 
वक़्त के साथ मुझे फ़िर हर चीज़ से नफरत हो गयी 
दोस्तों से ,दोस्ती से व अपनेआपसे भी :(
इस बार मैंने अपने मन से कॉलेज चेंज किया था 
पर सम्भाल लिया ,अपने आपको समझा दिया था कि 
अब मैं अपनी जिंदगी में नये लोगों को बिल्कुल जगह नहीं दूंगी 
कुछ हद तक अपने आपको किताबों की दुनिया तक समेट लिया था 
कि एक दिन फ़िर से बिना इज्जाजत के वो मेरी जिंदगी मे आ गयी 
नाम किसी का भी ज्यादा महत्व नहीं रखता…………
आजकल अपनी जिंदगी को भी थोड़ा बदलनें का सोंचा हैँ 
सो देखो ना आज ही एक नयी फ्रैंड बनायीं हैँ 
हां अभी कुछ दिन पहले राना हॉस्पीटल गयी थीं 
तब भी तो एक नई फ्रेंड बनायीं थी पर अफ़सोस 
मुझे उसके नाम के अलावा उसके बारे मे सब-कुछ याद हैं 
वैसे ना आजकल दोस्ती थोड़ी संजीदगी के साथ करती हू 

याद हैं पहले दोस्त होते थे ना तब उनके नाम के सीवा 
उनके बारे में कोइ इन्क्वारी नहीं करते थे 
पर आजकल किसी के बारे में सब-कुछ जानने के बाद 
उन्हें दोस्त बनाते हैं 
अजीब हैं पर सच हैं :-)!!!!!

Sunday 20 April 2014

कुछ जोड़ना-घटाना नहीं हैं मुझे....

दुखी हू ,आहत हू किसी और की वजह से नहीं बस 
केवल अपनी ही वजह से :(
खफा हू, नाराज हू किसी और से नहीं 
बस केवल अपने आपसे व अपनी ही जिंदगी से :(
चलो बहुत भागे अपनों के पीछे व उनके रिश्तों के पीछे 
अब थोड़ा ठहर जाते हैं कुछ रिश्तों के धागे  क्यों ना अपने 
दिल व मन से बांधे जाए अच्छा हैं ना यह हमें कभी अकेला भी नहीं छोड़ता :(
परवाह बहुत कर ली अब थोड़े बेपरवाह हो जाते हैं 
क्या मिल जाएगा महज किसी से बात करने से ??
कौनसी सांसें रुक जाएगी किसी से चैट ना कर पाने से :(
कौनसी आफत आ जाएगी किसी के दर्द ना बाँटने से ??
हम क्या किसी के महज राह ना बताने भर से ही अपने सफर को थाम देंगे ??
कौनसा किसी के मिलने से जिंदगी भर की राहत मिल जायेगी ??
उसकी यादों के सिवा भी तो बहुत बहाने हैं अपने आपको व्यस्त रखने के :-)
यक़ीनन जब तक हम अपनों को जताते रहेंगे उनकी अहमियत 
तब तक वो हमें आजमाते रहेंगे :(
आजमा भई आजमा.......हम तो चिकने घड़े से भी ज्यादा चिकने हैं 
कोई फर्क नहीं पड़ने वाला हमें :(
लगता हैं दिल ,दोस्ती और डांस यह तीनों ही चीज़ें 
मेरी सेहत के लिए कुछ ज्यादा ही हानिकारक हैं 
मुझे समझ में नहीं आता मैं ऐसी क्यों हू ???
सच्ची मैं बेमतलब की बातों को भी कितना दिल से लगा बैठती हू >??
मुझे अपने आप पर बेइंतहा गुस्सा आता हैं 
मन करता हैं अपने आपको ही पिठू  :(
रिश्तों का मतलब तक नहीं समझती हु ,इवन मुझे तो आज तक अपनी 
जिंदगी का मतलब भी समझ में नहीं आया ??
कुछ पुराने लोगों को फिर से पाना चाहती थी और 
नए लोगों से रिश्ता जोड़ने में बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा था 
पर हैं खुदा मुझे माफ कर दो ,प्लीज मुझे बक्श दो 
मैं अकेली खुश हू मैं अकेले जी सकती हू 
मेरी जिंदगी में अब दोस्तों और अपनों के लिए कोई कोना नहीं हैं :-)
बस एक कोने को तो सेफ रहने दो वरना 
उस इंसान को मैं जगह कहाँ से दूंगी ??
और आपको तो पता हैं ना दिल के मामले में मैं बहुत कच्ची हू 
सो उसके लिए किसी और के दिल का कोना उधार तो बिल्कुल नहीं ले सकती :-)
फाइनली लगता हैं अब शादी हम्म……………
कुछ समाज का भी सोचा जाना चाहिए 
क्या डरना रीति-रिवाजों  से ??
क्यों दूर भागना दुनिया की रस्मों से ??
क्यों तकलीफ देना अपनों को??
क्या डरना अपनी सवतन्त्रता के खो जाने से 
जन्म और मृत्यु सबके लिए समान होती हैं तो 
भई जिंदगी जीने का तरीका तो अलग होना ही चाहिए ना :(
पेरेंट्स ने कुछ सपोर्ट क्या किया मैं तो अपने आपको 
झाँसी की  रानी ही समझने लगी ??
अरे भई सपने केवल सोते वक़्त देख ले वो ही काफी हैं ??
उफ्फ ……in short jst i wanna say that-
मुझे ना ही आजादी चाहिए और ना ही कोई बगावत करनी हैं इस इंसानों के जहाँ में :-)

Saturday 19 April 2014

कुछ अपने बहुत याद आते हैं....

हैलो नानीजी ,
                      राम जी राम……लव यू अ लॉट :-)
आज ठीक पाँच साल बाद भी आपकी सारी यादों को मैंने अपने 
दिल के किसी एक खूबसूरत से कोने में बहुत अच्छे से सहेज के रखा हैं :-)
याद हैं मुझे 19th अप्रैल 2009 को मुझे बस स्टैंड से लाते 
हुए पापाजी ने बताया था कि सरिता अब तेरे नानीजी नहीं रहे :-)
एक ही पल में मुझे बहुत गहरा धक्का लगा था पर पापाजी मेरे 
साथ थे और उनसे ज्यादा अच्छे से भला मुझे कोई जान सकता हैं क्या ??
उस साल के बाद हर साल 19th अप्रैल के दिन मैं आपके नाम का 
एक पत्र लिखकर अपने पास रख लेती हू 
कुछ दिल की बातें बता देती हू आपको तो कुछ बातों के लिए आपका शुक्रिया अदा कर देती हू :-)
आज तक मुझे किसी चीज़ के खो जाने का दुःख नहीं हैं 
लेकिन आप मुझे छोड़कर चले गए इस बात का मुझे बहुत अफ़सोस हैं :(
आज तक जो लिखा उसमें से ही कुछ.............
(१)-19th अप्रैल 2010-
आपसे मैंने अपनी ही जिंदगी के बारे में जिकर किया था 
कुछ अपनी फ्रेंड्स के बारे में बताया था 
फर्स्ट ईयर में खूब सारी मिली थी ना सो 
जिनमें से सबसे ज्यादा जिक्र रिंकू का था :-)
(२)-19th अप्रैल 2011-
आपके गुजरने के बाद के बारह दिनों का जिक्र था 
"दुश्मनों से हो जाएगा प्यार ,
दोस्तों को आजमाते रहिए :-)"
नानीजी मुझे आपकी बहुत याद आती हैं 
जब आप चले गए तो अपनी इन यादों को पीछे क्यों छोड़ा ??
प्लीज इन यादों को बोलो मुझे आपकी याद ना दिलाए 
क्यूंकि जब मुझे आपकी याद आती हैं तब यह बड़ा रुलाती हैं :(
(३ )-19th अप्रैल 2012-
2012 वाले पेपर्स मिले नहीं हैं..........
(४)-19th अप्रैल 2013-
नानीजी मैंने जिंदगी के हर मोड़ पर आपको अपने साथ पाया हैं 
पिछले साल १९th अप्रैल के दिन नवरात्रा थे सो मैंने 21st अप्रैल को आपको लिखा था 
देखो आखिर याद आने की भी हद होती हैं 
अपनी यादों को बोला करो मुझे गाहे-बेगाहे यू ही परेशान ना किया करे 
हम तनहा ही अच्छे :(
लव यू सो मच मिस यू अ लॉट :-)


हम्म यह कुछ बातें थी पुराने जरोखे की 
और आज तो पुराना ही काफी हैं शायद 
कहा जरुरत हैं कुछ नया लिखने की :-)


life can give us beautiful relations but
only true relationship can give us beautiful life...:-)

Wednesday 16 April 2014

कितने पास.....??

जब भी मेरा ब्लॉग पर कुछ लिखने का मन करता हैं 
तब पहले उस पोस्ट को मैं अपने रफ़ रजिस्टर में नोट करती ह 
फिर उसे एक-दो बार पढ़कर सोचती हू 
हां अब ठीक हैं तब अपडेट कर पाती हू 
पर जब मैंने अपनी सारी पोस्ट्स देखि तब मुझे लगा कि 
वो पोस्ट्स ज्यादा अच्छी/बेहतर थी जिन्हें मैंने बिना सोचे-समझे लिखा 
सोच-समझकर लिखी गयी पोस्ट्स के बारे में तो ऐसा लगा 
जैसे की चेहरे पर मेक अप का नकाब चढ़ा दिया गया हो 
हां भई मान गए फीलिंग्स नाम की भी कोई चीज़ होती हैं :-)
मेरा जीवन भटकती आत्मा जैसा हैं और मेरे विचार हेहेहेहेहे..........
आप भी ना अब अपनी प्रंशसा भला कोई खुद भी करता हैं क्या :-)
खैर आप बताइये आप किसी के करीब जाने में डरते हैं या नहीं ???
अब आप यह क्यों सोच रहे हैं कि कौन आपके करीब हैं और कौन नहीं ??
चलिए अब मुझे भी विश्वास हो गया कि केवल मेरे ही विचार नहीं भटकते हैं 
यह तो बस प्रकति का नियम हैं :-)
चलिए मैं बताती हू भई सच हैं मैं तो किसी के करीब जाने में बहुत ज्यादा ही डरती हू 
और दूर जाने में तो उससे भी कहीं ज्यादा पर दूरियों में थोड़ा सुकून नजर आता हैं 
सोचो भला कितने दूर ,कितने पास................
नजदीकियां- किसी से पहरों बातें करना और फिर उसी के ही ख्यालों में खो जाना 
भले ही वो इंसान हमसे हजारों किलोमीटर दूर बैठा हो फिर 
भी इन फासलों के बाद भी वो दिल के किसी एक कोने में बेहद करीब नजर आता हैं :-)
उसकी प्यार भरी कही गयी किसी एक बात का एहसास ही काफी होता हैं हर पल मुस्कुराने के लिए 
उसकी एक प्रंशसा काफी होती हैं अपने आपसे प्यार करने के लिए 
उसका वक़्त पर जवाब दे देना ही बहुत होता हैं अपने आपको व्यस्त रखने के लिए 
हमारी हर नाराजगी की दवा होता है उसका कॉल या एक मैसेज 
उफ्फ………………मन लफंगा बड़ा करे अपने ………………………
बहुत बेसुरी आवाज हैं मेरी इसलिए अपने लफ्जों को दफ़न कर दिया 

व्यवधान ………………………
हम्म अर्द्वीराम लगे तो वो बात तो समझ में आती ही हैं पर यहाँ तो 
जिंदगी पर पूरा विराम ही लग जाता हैं 
सलवटें सँवारी ही नहीं जाती मुझसे तो 
कहने का मतलब………………नहीं नहीं यह बात कहने की नहीं महज 
मेरे समझने के लिए ही हैं :-)
अब सोचो भला दूरियां, फासले, नजदीकियाँ इन्हें 
मेरी जगह तो मैं ही समझ सकती हू ना और भला लिखने से तो 
शब्द हैं भाई क्या पता जो दूरियाँ बढ़ाये 
शायद वो कुछ कम भी कर दे 
खैर जानती हू मैं कायर, कमजोर, बुझदिल व डरपोक लोगों के लिए यह बातें 
कोई मायना नहीं रखती और वो तो जन्म से ही…………हम्म 
यक़ीनन लग रहा हैं की आज की पोस्ट में दिल और दिमाग 
दोनों को ही मैंने जरा सी भी तकलीफ नहीं दी हैं :-)

Monday 14 April 2014

दिल चाहता हैं.....

हम्म पता हैं मेको यह तो किसी मूवी का नाम हैं 
उफ्फ डर लग रहा हैं पता नहीं मैंने किसी का टाइटल क्यों चुरा लिया 
हाहाहा………एक्चुअली वो आपकी समझ हैं 
आजकल के लोग ना मुझे समझ में नहीं आते 
सभी एक-दूसरे को चोर साबित करने पर तुले होते हैं ना सो 
अब देखिए भई विचार तो आखिर विचार होते हैं 
और इंसानों के विचार मिलने से ही तो यह दुनिया और हसीं होती हैं 
वरना विरोध तो तबाही ही हैं 
इसलिए आजकल लिखने का मन कम ही करता हैं 
क्या पता कोई पोस्ट लिखू और किसी के विचारों से मिल जाए तो ????
देखिए यह मेरी आदत ना पता नहीं कब जाएगी छोड़िए हम क्यों करें फ़िक्र :-)
कल एक बार फिर देखि दिल चाहता हैं मूवी 
देखने कि वजह यह थी की इस मूवी को बहुत पहले देखा था 
तब मतलब भावनाएँ कम और शब्द मुझे ज्यादा समझ में आते थे 
तो एक दिन बातों-२ में हम मूवीज कि बातें करने लगे 
मैंने कहा मुझे दिल चाहता हैं मूवी बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी 
उसने कहा फीलिंग्स होती तो समझ पाती :(
देट वॉस अन अमेजिंग मूवी..........
मुझे उसके शब्द चुभ गए व कुछ दर्द दे गए 
हाऊ कैन यू say देट कि आई एम फ़ीलिंगलेस व्हाट डू यू थिंक अबाउट me ????
पता नहीं इस छोटी सी बात पर मैं कितनी देर तक बड़बड़ाती रही :(
सुनो यू आर राइट यस यह दिल चाहता हैं वॉस अन अमेजिंग मूवी :-)
अब कुछ तो गुस्ताखियाँ तूम करो 
भावनाओं को समझते हो ना तो तुम क्यों नहीं समझते मेरे दिल की बेजुबां आवाज को 

उफ्फ बिना दिल के कहे कुछ लिखा वी नहीं जाता :-)क्यूंकि आज यह दिल तो कुछ नहीं चाह रहा हैं……
चलो पब्लिश करने में तो क्या हैं ड्राफ्ट में इन्हें क्यों कैद करू ??

Wednesday 9 April 2014

....कुछ मिलता सा हैं मेरे जीवन से :-)

एक दिन शाम बेहद ही उदास थी भविष्य की आकांक्षाओं व चिंताओ ने आ घेरा 
सो वक़्त व माहौल भी बदल गया था ,मैं थोड़ी संजीदा हो गयी थी 
माँ ने मेरा चेहरा पढ़ते हुए कहा बता दो हमें क्या फ़िक्र हैं ??
मैं उस खुदा का शुक्रिया अदा करती हू अपनी हर साँस में मुझे इतने 
अच्छे पेरेंट्स देने के लिए……जिनकी तारीफ के लिए मेरे  पास शब्द नहीं हैं :-)
वरना लोग चेहरा तो दूर की बात हैं कहे गए शब्द भी नहीं समझ पाते हैं :(
फिर पापाजी ने पूछा आजकल काफी परेशां रहती हो 
बताने भर से भी मन हल्का व आदि समस्या हल हो जाती हैं कह दो क्या टेंशन हैं ??
मेरी आँखें बरस पड़ी ,बहुत अधिकार जता देती हू मैं नाराज हो जाती हू 
अगर वो मुझे बुरे के लिए टोके तो जबकि मेरे हालातों व मेरे हर लड़खड़ाते 
कदम पर केवल वो ही तो लोग मुझे सहारा देते हैं ,मुझे सम्भालते हैं :-)
कुछ देर रोने के बाद मैं बोली -
पापाजी मैं बाकि लड़कियों की तरह नहीं जीना चाहती हू 
मेरा केवल एक यही सपना नहीं हैं कि बस केवल एक अपना परिवार हो और उम्र कट जाए 
मैं केवल इतना ही नहीं सोच सकती कि मुझे तकलीफ नहीं हैं मीन्स सारी दुनिया भी खुश हैं 
मैं अपने दम पर जीना चाहती हू ना कि दूसरों के कंधो पर 
मैं चाहती हू लोग मेरे मरने के बाद भी मेरी जिंदादिली को याद रखे 
वरना पनपते और टूटते तो पेड़-पौधे भी हैं :(
पापाजी आप भी जानते हैं कि जिस उम्र में लड़कियाँ बहकने सी बातें करती 
हैं उस उम्र में मैंने सब मुसीबतों को झेलना सिखा 
अपने आपको हर पल सम्भाले रखने की कोशिश की और कभी चुपके से आपने गिरने से बचा लिया 
जिस उम्र में लड़कियाँ कुछ वक़्त सजने-संवरने में बिता देती हैं 
उस उम्र में मैंने अपने आपको दुनिया की सोच ,फिकर ,कुछ लिखने की 
ज़िद्द में व्यस्त किया कि मुझे अपनी शक्ल याद ही नहीं रही :-)
जिस उम्र में लड़कियों पर अंगुलियाँ उठायी जाती हैं 
उस उम्र में मैंने अंगुलियों के पेरवे तक तो अपनी तरफ नहीं उठने दिया 
उल्टा परशंसा पाने के बाद भी मैंने उन्हीं अँगुलियों पर कुछ लिखा 
क्यूंकि वो अंगुलियां मेरी तरफ नहीं उठती हैं तो क्या हुआ 
मेरे जैसी ही मासूम बच्चियों पर तो उठती ही हैं :-)
जिस उम्र में किसी राजकुमार के सपने संजोये जाते हैं 
उस उम्र में मैंने कुछ अच्छा काम करने के सपने देखे हैं :-)
आप भी जानते हो कि मैंने कुछ पाने की चाहत में बहुत कुछ खोया व छोड़ा हैं 
पर मुझे कोई अफ़सोस नहीं हमेशा बस मेरी तो चाहत केवल इतनी ही रही
 कि कोई नेक काम किया जाए etc ................\
हूह उस दिन पहली बार पापाजी को जो मन में आया वो बताने में कामयाब हो पाई 
वरना आज तक मेरी सारी बातें वो केवल दो कागजों में ही पढ़ते थे 
जब-२ इच्छा होती हैं मैं उन्हें पत्र लिखने का ही काम करती हु 
हिम्मत आ गयी थी इस बार इसलिए बोलकर ही बता दिया था वाओ:-)
अब मन थोडा हल्का हो गया था ………
पापाजी ने कहा मैं केवल इतना चाहता हू कि तुम हमेशा खुश रहो 
मैं तुम्हारे चेहरे पर उदासी की शिकन तक नहीं देखना चाहता :-)
बहुत-२ आभार पापा ………बस यू ही वक़्त-बेवकत हमेशा मेरे साथ रहिए !!!

Tuesday 8 April 2014

उसकी शरण में.....

देखिए शरण ना ही पतियों की अच्छी होती हैं और ना ही प्रेमियों .............
खैर मैं तो उस ऊपर वाले की शरण की बात कर रही हू :-)
हम्म.......अगर आप आस्तिक हैं और आपको सच्चे सद्गुरु मिले हैं 
तो यकीं मानिए आप इस दुनिया में सबसे लकी हैं !!!!!
रामसभा में पिछली साल नवरात्रा पर नौ दिन तक शिमरण ही रखा गया था 
इसलिए इस साल के नवरात्रा का भी मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी :-)
और 31st मार्च को वो दिन आ ही गया था 
उफ्फ............11 से 2 बजे तक तो टोपोलॉजी का पेपर था खैर उस दिन का मूड व दिन दोनों 
ही अच्छे बीते सो पेपर भी ठीक ही जाना था 
शाम को पापाजी ने पूछा रामसभा जाना हैं अहा मैं भला मना कैसे कर सकती थी 
जाना तय हुआ ,मुझे लगा इस बार भी पिछले साल की तरह ही मेरा तो 
घर से रामसभा और रामसभा से घर तक का आना-जाना लगा रहेगा 
पर यू लगा वहाँ पर जाने के बाद किसी ने गोंद से ही नहीं 
शायद फेवी स्टिक से ही चिपका दिया होगा तभी तो अब आज घर पहुँच पाई हू :-)
खैर इस बार के नवरात्रा अब तक के नवरात्रा में से बेस्ट रहे :-)
कुछ चीज़ें मिस हुई जैसे कि वहाँ यादों का इडियट बॉक्स नहीं सुन पाती थी 
अपना जीमेल चेक नहीं कर सकती थी ,किसी का ब्लॉग नहीं पढ़ पाती थी 
इवन अपने भी ब्लॉग की खबर नहीं थी 
राजस्थान पत्रिका हाथ में लेती और बात-करामात कभी कभार पढ़ना भूल जाती 
तो भूल जाओ कि फिर से न्यूज़ पेपर मिलेगा भी क्या ????
खैर आज माँ का फ़ोन चेक किया कुछ लोगों के मैसेजस मिले 
कुछ कॉल्स भी हां कुछ मेल्स भी मिल गयी 
चलिए भई खुश हैं अभी भी कुछ तो लोग हैं जो हमें याद करते हैं :(
उफ्फ फिर से नकली दुनिया की बातें करने लगा हैं यह बावरा मन 
सबसे बेस्ट बात थी कि रामसभा में किसी के चेहरे पर नकाब नहीं होता हैं 
सब दुनिया की सच्चाई से बहुत ही अच्छे तरीके से रुबरु हो जाते हैं 
"हंसा रे हंस-२ मिठोई बोलणो ,जग में जीवणो थोड़ो भलाई लेवणो ":-)
मैंने खुशियाँ ढूंढी थी बच्चों में कैसे मुझे वो मना रहे थे जब मैं उन सबसे नाराज हो गयी थी 
उनके साथ होती थी मैं जब भी तब अपनी समझदारी वाले टैग को 
एक तरफ रख देती थी तथा मैं उनसे भी ज्यादा बेवकूफ बच्ची बन जाती थी :-)
वहाँ रहने पर पता चला मैं कितनी स्पेशल हू यू ही खामखां खुद को कोसती रहती हू 
मेरी खाना परोसने की अदा सबके दिल में कैसे घर कर गयी थी ना ????
सब ऑन्टीज मेरा कितना ख्याल रखते थे ……
कितनी अच्छी आदतें हो गयी थी उठते ही संता को प्रणाम करना 
और फिर सभी रामस्नेही लोगों को राम जी राम बोलना :-)
अब लगता हैं अपने भगवानजी के लिए भी एक स्पेशल ब्लॉग होना चाहिए :-)
बस थोड़ा और इंतज़ार…………
जितनी ख़ुशी मिली रामसभा में उससे कहीं ज्यादा सकून भी 
पापाजी थैंक यू :-)
यकीं मान लीजिए सबसे बेस्ट शरण बस केवल परम पिता परमेश्वर की ही होती हैं :-)