वक़्त बहुत देर से मिला शायद सुबह से अब तक
सभी ने शब्दों से अपने पिता का क़र्ज़ चूका ही दिया होगा ??
हम्म आप अब ज्यादा मत सोचिए कि सारिका हमेशा ऐसा ही क्यों सोचती हैं
सोच हैं बाबा विचारों का क्या हैं ??
वक़्त बदला कि सोच और इंसान सभी बदल जाते हैं :(
आज फादर`स डे हैं पापाजी तो अशोक सर के अभिनव राजस्थान अभियान
के प्रोग्राम में गए हैं और मैं भी अभी-२ कहीं जाकर ही आई हू !!
मेरी जिंदगी में सबसे ज्यादा मैंने अपने शौक व अपनी ख़ुशी के लिए लिखा हैं
फिर बहुत कुछ व बहुत ज्यादा अपने पिताजी को लिखा हैं
हर पत्र की शुरुआत कुछ यू होती हैं
"हैलो पापाजी,
रामजी-राम !!मैं जो कुछ भी सोचती हू या जो आपसे कहना चाहती हू
वो सब कह पाना मेरे लिए आसान नहीं हैं इसलिए लिख रही हू
जबसे होश संभाला हैं तबसे उस खुदा ने मुझे लिखने की थोड़ी कला सीखा दी
वरना बिन इन शब्दों के मेरा होता हैं ????"
फिर लास्ट लाइन
"उम्मीद करती हू आप मेरी बात को समझेंगें
शुक्रिया सारिका !!"
इस दुनिया में हर पिता अपने बच्चों को हर ख़ुशी देने की कोशिश करता हैं
और हर बच्चे के पापा उसके लिए दुनिया के बेस्ट पापा होते हैं !!
पापा अगर मुझे कुछ शब्दों की समझ होती तो मैं आपको अपनी
जिंदगी में लिखी बेस्ट लाइन्स डेडिकेट करती
मेरे पास जादू की छड़ी होती तो मैं उसे घुमाकर
इस दुनिया की सबसे बेस्ट, सच्ची, अच्छी व समझदार बेटी बनने की कोशिश करती
"पिता के धुप में तपते जूतों को छाया में रखती हैं बेटी
पिता के कहने से पहले शब्द समझ जाती हैं बेटी
पिता की आँखों का पानी पर सिर का नाज व गुमान होती हैं बेटी
पिता की हर ख़ामोशी का राज ढूंढती हैं बेटी
पिता के पसीने की कमाई पाई-२ का हिसाब रखती हैं बेटी
पिता के सिर पर बढ़ती हर सलवट का ख्याल रखती हैं बेटी :-)"
यह तो कुछ बातें हैं कि मैं ऐसा कुछ करती हू खैर आज फादर`स डे हैं
"एक इंसान हैं जिनके जूते व उनकी सिम्प्लिसिटी कभी नहीं बदलती हैं
चाहे कितने भी मौसम बदले पर मेरे प्रति उनके विचार कभी नहीं बदलते हैं
चाहे कितने भी तूफान आए पर वो अपने बच्चों को हर ख़ुशी देने के लिए उनसे टकरा ही जाते हैं
चाहे हम बच्चे कितना भी गिरे पर वो हमारा ओहदा बढ़ा ही देते हैं "
कभी-कभार यू होता हैं कि विचारों का शब्द साथ नहीं दे पाते हैं
आज लिखना तो बहुत कुछ व बहुत अच्छा था पर..................
खैर पापाजी बस इतना ही कि जैसे जिंदगी के 20-21 साल आपके साथ बिताये हैं
वैसे ही मैं यह सारी उम्र व जिंदगी बिताना चाहती हु आपके साथ
सच आज शब्दों ने बिलकुल साथ नहीं दिया
इससे कहीं ज्यादा अच्छी पोस्ट तो वो भी हैं जो माँ के लिए लिखी थी
आप भी तो सब समझते हैं पापाजी
आज पुराने पत्रों में जो लाइन लिखी होती थी वो याद आ गयी
"अब आगे और क्या लिखू आप खुद भी बहुत समझदार हैं "
अक्सर जब मैं हॉस्टल में रहती थी तब जानवर मूवी का यह गाना बहुत याद आता था
"तुझको ना देखू तो जी घबराता हैं, देखके तुझको दिल को मेरे चैन आता हैं
यह कैसा रिश्ता, कैसा नाता हैं ???"
सभी ने शब्दों से अपने पिता का क़र्ज़ चूका ही दिया होगा ??
हम्म आप अब ज्यादा मत सोचिए कि सारिका हमेशा ऐसा ही क्यों सोचती हैं
सोच हैं बाबा विचारों का क्या हैं ??
वक़्त बदला कि सोच और इंसान सभी बदल जाते हैं :(
आज फादर`स डे हैं पापाजी तो अशोक सर के अभिनव राजस्थान अभियान
के प्रोग्राम में गए हैं और मैं भी अभी-२ कहीं जाकर ही आई हू !!
मेरी जिंदगी में सबसे ज्यादा मैंने अपने शौक व अपनी ख़ुशी के लिए लिखा हैं
फिर बहुत कुछ व बहुत ज्यादा अपने पिताजी को लिखा हैं
हर पत्र की शुरुआत कुछ यू होती हैं
"हैलो पापाजी,
रामजी-राम !!मैं जो कुछ भी सोचती हू या जो आपसे कहना चाहती हू
वो सब कह पाना मेरे लिए आसान नहीं हैं इसलिए लिख रही हू
जबसे होश संभाला हैं तबसे उस खुदा ने मुझे लिखने की थोड़ी कला सीखा दी
वरना बिन इन शब्दों के मेरा होता हैं ????"
फिर लास्ट लाइन
"उम्मीद करती हू आप मेरी बात को समझेंगें
शुक्रिया सारिका !!"
इस दुनिया में हर पिता अपने बच्चों को हर ख़ुशी देने की कोशिश करता हैं
और हर बच्चे के पापा उसके लिए दुनिया के बेस्ट पापा होते हैं !!
पापा अगर मुझे कुछ शब्दों की समझ होती तो मैं आपको अपनी
जिंदगी में लिखी बेस्ट लाइन्स डेडिकेट करती
मेरे पास जादू की छड़ी होती तो मैं उसे घुमाकर
इस दुनिया की सबसे बेस्ट, सच्ची, अच्छी व समझदार बेटी बनने की कोशिश करती
"पिता के धुप में तपते जूतों को छाया में रखती हैं बेटी
पिता के कहने से पहले शब्द समझ जाती हैं बेटी
पिता की आँखों का पानी पर सिर का नाज व गुमान होती हैं बेटी
पिता की हर ख़ामोशी का राज ढूंढती हैं बेटी
पिता के पसीने की कमाई पाई-२ का हिसाब रखती हैं बेटी
पिता के सिर पर बढ़ती हर सलवट का ख्याल रखती हैं बेटी :-)"
यह तो कुछ बातें हैं कि मैं ऐसा कुछ करती हू खैर आज फादर`स डे हैं
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जब हम घूमने चले थे ना तब मैंने यह पिक चुपके से ले ली थी वरना फोटो खिंचवाने का शौक तो आपने बहुत पहले ही छोड़ दिया :-) |
"एक इंसान हैं जिनके जूते व उनकी सिम्प्लिसिटी कभी नहीं बदलती हैं
चाहे कितने भी मौसम बदले पर मेरे प्रति उनके विचार कभी नहीं बदलते हैं
चाहे कितने भी तूफान आए पर वो अपने बच्चों को हर ख़ुशी देने के लिए उनसे टकरा ही जाते हैं
चाहे हम बच्चे कितना भी गिरे पर वो हमारा ओहदा बढ़ा ही देते हैं "
कभी-कभार यू होता हैं कि विचारों का शब्द साथ नहीं दे पाते हैं
आज लिखना तो बहुत कुछ व बहुत अच्छा था पर..................
खैर पापाजी बस इतना ही कि जैसे जिंदगी के 20-21 साल आपके साथ बिताये हैं
वैसे ही मैं यह सारी उम्र व जिंदगी बिताना चाहती हु आपके साथ
सच आज शब्दों ने बिलकुल साथ नहीं दिया
इससे कहीं ज्यादा अच्छी पोस्ट तो वो भी हैं जो माँ के लिए लिखी थी
आप भी तो सब समझते हैं पापाजी
आज पुराने पत्रों में जो लाइन लिखी होती थी वो याद आ गयी
"अब आगे और क्या लिखू आप खुद भी बहुत समझदार हैं "
अक्सर जब मैं हॉस्टल में रहती थी तब जानवर मूवी का यह गाना बहुत याद आता था
"तुझको ना देखू तो जी घबराता हैं, देखके तुझको दिल को मेरे चैन आता हैं
यह कैसा रिश्ता, कैसा नाता हैं ???"
3 comments:
"सभी ने शब्दों से अपने पिता का क़र्ज़ चूका ही दिया होगा ??"
इस पर तो यही कहूँगा कि पिता का कर्ज़ या माँ का कर्ज़ कोई भी कभी नहीं चुका सकता।
ताजमहल मे अंकल जी का फोटो देख कर मुझे भी अपने बीते दिन याद आ गए जब हम लोग आगरा मे रहते थे।
पोस्ट बहुत अच्छी लगी।
ईश्वर की कृपा और बड़ों का आशीर्वाद आपके साथ हमेशा बना रहे।
सादर
kya bat hai....
"पिता के धुप में तपते जूतों को छाया में रखती हैं बेटी
पिता के कहने से पहले शब्द समझ जाती हैं बेटी
...बिल्कुल सच..पिता और पुत्री के बीच संबंध एक ऐसा अहसास है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है..बेटी कितनी भी दूर हो, वह सदैव हर पल अपने पिता के निकट होती है. इन अहसासों को बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं आपने...शुभकामनायें!
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