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Sunday 20 April 2014

कुछ जोड़ना-घटाना नहीं हैं मुझे....

दुखी हू ,आहत हू किसी और की वजह से नहीं बस 
केवल अपनी ही वजह से :(
खफा हू, नाराज हू किसी और से नहीं 
बस केवल अपने आपसे व अपनी ही जिंदगी से :(
चलो बहुत भागे अपनों के पीछे व उनके रिश्तों के पीछे 
अब थोड़ा ठहर जाते हैं कुछ रिश्तों के धागे  क्यों ना अपने 
दिल व मन से बांधे जाए अच्छा हैं ना यह हमें कभी अकेला भी नहीं छोड़ता :(
परवाह बहुत कर ली अब थोड़े बेपरवाह हो जाते हैं 
क्या मिल जाएगा महज किसी से बात करने से ??
कौनसी सांसें रुक जाएगी किसी से चैट ना कर पाने से :(
कौनसी आफत आ जाएगी किसी के दर्द ना बाँटने से ??
हम क्या किसी के महज राह ना बताने भर से ही अपने सफर को थाम देंगे ??
कौनसा किसी के मिलने से जिंदगी भर की राहत मिल जायेगी ??
उसकी यादों के सिवा भी तो बहुत बहाने हैं अपने आपको व्यस्त रखने के :-)
यक़ीनन जब तक हम अपनों को जताते रहेंगे उनकी अहमियत 
तब तक वो हमें आजमाते रहेंगे :(
आजमा भई आजमा.......हम तो चिकने घड़े से भी ज्यादा चिकने हैं 
कोई फर्क नहीं पड़ने वाला हमें :(
लगता हैं दिल ,दोस्ती और डांस यह तीनों ही चीज़ें 
मेरी सेहत के लिए कुछ ज्यादा ही हानिकारक हैं 
मुझे समझ में नहीं आता मैं ऐसी क्यों हू ???
सच्ची मैं बेमतलब की बातों को भी कितना दिल से लगा बैठती हू >??
मुझे अपने आप पर बेइंतहा गुस्सा आता हैं 
मन करता हैं अपने आपको ही पिठू  :(
रिश्तों का मतलब तक नहीं समझती हु ,इवन मुझे तो आज तक अपनी 
जिंदगी का मतलब भी समझ में नहीं आया ??
कुछ पुराने लोगों को फिर से पाना चाहती थी और 
नए लोगों से रिश्ता जोड़ने में बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा था 
पर हैं खुदा मुझे माफ कर दो ,प्लीज मुझे बक्श दो 
मैं अकेली खुश हू मैं अकेले जी सकती हू 
मेरी जिंदगी में अब दोस्तों और अपनों के लिए कोई कोना नहीं हैं :-)
बस एक कोने को तो सेफ रहने दो वरना 
उस इंसान को मैं जगह कहाँ से दूंगी ??
और आपको तो पता हैं ना दिल के मामले में मैं बहुत कच्ची हू 
सो उसके लिए किसी और के दिल का कोना उधार तो बिल्कुल नहीं ले सकती :-)
फाइनली लगता हैं अब शादी हम्म……………
कुछ समाज का भी सोचा जाना चाहिए 
क्या डरना रीति-रिवाजों  से ??
क्यों दूर भागना दुनिया की रस्मों से ??
क्यों तकलीफ देना अपनों को??
क्या डरना अपनी सवतन्त्रता के खो जाने से 
जन्म और मृत्यु सबके लिए समान होती हैं तो 
भई जिंदगी जीने का तरीका तो अलग होना ही चाहिए ना :(
पेरेंट्स ने कुछ सपोर्ट क्या किया मैं तो अपने आपको 
झाँसी की  रानी ही समझने लगी ??
अरे भई सपने केवल सोते वक़्त देख ले वो ही काफी हैं ??
उफ्फ ……in short jst i wanna say that-
मुझे ना ही आजादी चाहिए और ना ही कोई बगावत करनी हैं इस इंसानों के जहाँ में :-)

4 comments:

Kailash Sharma said...

यक़ीनन जब तक हम अपनों को जताते रहेंगे उनकी अहमियत
तब तक वो हमें आजमाते रहेंगे :(
...वाह..लाज़वाब और गहन चिंतन...क्या कमाल की लेखन शैली है...शुभकामनायें!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मर्मस्पर्शी .....

दिगम्बर नासवा said...

यही एक समस्या है ... इंसान परेशान खुद के सोचने से ही होता है ... पर ये सोच भी जरूरी है संवेदनशीलता बनी रहती है इसी से ...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



☆★☆★☆



कुछ रिश्तों के धागे क्यों ना अपने
दिल व मन से बांधे जाए

यही श्रेष्ठ रास्ता है...

आदरणीय सारिका जी
रचना में स्व से संवाद प्रभावित करता है...
साधुवाद