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Wednesday 16 April 2014

कितने पास.....??

जब भी मेरा ब्लॉग पर कुछ लिखने का मन करता हैं 
तब पहले उस पोस्ट को मैं अपने रफ़ रजिस्टर में नोट करती ह 
फिर उसे एक-दो बार पढ़कर सोचती हू 
हां अब ठीक हैं तब अपडेट कर पाती हू 
पर जब मैंने अपनी सारी पोस्ट्स देखि तब मुझे लगा कि 
वो पोस्ट्स ज्यादा अच्छी/बेहतर थी जिन्हें मैंने बिना सोचे-समझे लिखा 
सोच-समझकर लिखी गयी पोस्ट्स के बारे में तो ऐसा लगा 
जैसे की चेहरे पर मेक अप का नकाब चढ़ा दिया गया हो 
हां भई मान गए फीलिंग्स नाम की भी कोई चीज़ होती हैं :-)
मेरा जीवन भटकती आत्मा जैसा हैं और मेरे विचार हेहेहेहेहे..........
आप भी ना अब अपनी प्रंशसा भला कोई खुद भी करता हैं क्या :-)
खैर आप बताइये आप किसी के करीब जाने में डरते हैं या नहीं ???
अब आप यह क्यों सोच रहे हैं कि कौन आपके करीब हैं और कौन नहीं ??
चलिए अब मुझे भी विश्वास हो गया कि केवल मेरे ही विचार नहीं भटकते हैं 
यह तो बस प्रकति का नियम हैं :-)
चलिए मैं बताती हू भई सच हैं मैं तो किसी के करीब जाने में बहुत ज्यादा ही डरती हू 
और दूर जाने में तो उससे भी कहीं ज्यादा पर दूरियों में थोड़ा सुकून नजर आता हैं 
सोचो भला कितने दूर ,कितने पास................
नजदीकियां- किसी से पहरों बातें करना और फिर उसी के ही ख्यालों में खो जाना 
भले ही वो इंसान हमसे हजारों किलोमीटर दूर बैठा हो फिर 
भी इन फासलों के बाद भी वो दिल के किसी एक कोने में बेहद करीब नजर आता हैं :-)
उसकी प्यार भरी कही गयी किसी एक बात का एहसास ही काफी होता हैं हर पल मुस्कुराने के लिए 
उसकी एक प्रंशसा काफी होती हैं अपने आपसे प्यार करने के लिए 
उसका वक़्त पर जवाब दे देना ही बहुत होता हैं अपने आपको व्यस्त रखने के लिए 
हमारी हर नाराजगी की दवा होता है उसका कॉल या एक मैसेज 
उफ्फ………………मन लफंगा बड़ा करे अपने ………………………
बहुत बेसुरी आवाज हैं मेरी इसलिए अपने लफ्जों को दफ़न कर दिया 

व्यवधान ………………………
हम्म अर्द्वीराम लगे तो वो बात तो समझ में आती ही हैं पर यहाँ तो 
जिंदगी पर पूरा विराम ही लग जाता हैं 
सलवटें सँवारी ही नहीं जाती मुझसे तो 
कहने का मतलब………………नहीं नहीं यह बात कहने की नहीं महज 
मेरे समझने के लिए ही हैं :-)
अब सोचो भला दूरियां, फासले, नजदीकियाँ इन्हें 
मेरी जगह तो मैं ही समझ सकती हू ना और भला लिखने से तो 
शब्द हैं भाई क्या पता जो दूरियाँ बढ़ाये 
शायद वो कुछ कम भी कर दे 
खैर जानती हू मैं कायर, कमजोर, बुझदिल व डरपोक लोगों के लिए यह बातें 
कोई मायना नहीं रखती और वो तो जन्म से ही…………हम्म 
यक़ीनन लग रहा हैं की आज की पोस्ट में दिल और दिमाग 
दोनों को ही मैंने जरा सी भी तकलीफ नहीं दी हैं :-)

2 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

अच्छा है। बिना सोचे समझे लिखने से अभिव्यक्ति अपने स्वाभाविक स्तर पर होती है। लेकिन फिर भी चाहे आप पहले रफ रजिस्टर पर लिखें या सीधे ब्लॉग पर ;लिखते समय दिमाग अपना काम तो करता ही है।


सादर

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 18/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !