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Tuesday 8 April 2014

उसकी शरण में.....

देखिए शरण ना ही पतियों की अच्छी होती हैं और ना ही प्रेमियों .............
खैर मैं तो उस ऊपर वाले की शरण की बात कर रही हू :-)
हम्म.......अगर आप आस्तिक हैं और आपको सच्चे सद्गुरु मिले हैं 
तो यकीं मानिए आप इस दुनिया में सबसे लकी हैं !!!!!
रामसभा में पिछली साल नवरात्रा पर नौ दिन तक शिमरण ही रखा गया था 
इसलिए इस साल के नवरात्रा का भी मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी :-)
और 31st मार्च को वो दिन आ ही गया था 
उफ्फ............11 से 2 बजे तक तो टोपोलॉजी का पेपर था खैर उस दिन का मूड व दिन दोनों 
ही अच्छे बीते सो पेपर भी ठीक ही जाना था 
शाम को पापाजी ने पूछा रामसभा जाना हैं अहा मैं भला मना कैसे कर सकती थी 
जाना तय हुआ ,मुझे लगा इस बार भी पिछले साल की तरह ही मेरा तो 
घर से रामसभा और रामसभा से घर तक का आना-जाना लगा रहेगा 
पर यू लगा वहाँ पर जाने के बाद किसी ने गोंद से ही नहीं 
शायद फेवी स्टिक से ही चिपका दिया होगा तभी तो अब आज घर पहुँच पाई हू :-)
खैर इस बार के नवरात्रा अब तक के नवरात्रा में से बेस्ट रहे :-)
कुछ चीज़ें मिस हुई जैसे कि वहाँ यादों का इडियट बॉक्स नहीं सुन पाती थी 
अपना जीमेल चेक नहीं कर सकती थी ,किसी का ब्लॉग नहीं पढ़ पाती थी 
इवन अपने भी ब्लॉग की खबर नहीं थी 
राजस्थान पत्रिका हाथ में लेती और बात-करामात कभी कभार पढ़ना भूल जाती 
तो भूल जाओ कि फिर से न्यूज़ पेपर मिलेगा भी क्या ????
खैर आज माँ का फ़ोन चेक किया कुछ लोगों के मैसेजस मिले 
कुछ कॉल्स भी हां कुछ मेल्स भी मिल गयी 
चलिए भई खुश हैं अभी भी कुछ तो लोग हैं जो हमें याद करते हैं :(
उफ्फ फिर से नकली दुनिया की बातें करने लगा हैं यह बावरा मन 
सबसे बेस्ट बात थी कि रामसभा में किसी के चेहरे पर नकाब नहीं होता हैं 
सब दुनिया की सच्चाई से बहुत ही अच्छे तरीके से रुबरु हो जाते हैं 
"हंसा रे हंस-२ मिठोई बोलणो ,जग में जीवणो थोड़ो भलाई लेवणो ":-)
मैंने खुशियाँ ढूंढी थी बच्चों में कैसे मुझे वो मना रहे थे जब मैं उन सबसे नाराज हो गयी थी 
उनके साथ होती थी मैं जब भी तब अपनी समझदारी वाले टैग को 
एक तरफ रख देती थी तथा मैं उनसे भी ज्यादा बेवकूफ बच्ची बन जाती थी :-)
वहाँ रहने पर पता चला मैं कितनी स्पेशल हू यू ही खामखां खुद को कोसती रहती हू 
मेरी खाना परोसने की अदा सबके दिल में कैसे घर कर गयी थी ना ????
सब ऑन्टीज मेरा कितना ख्याल रखते थे ……
कितनी अच्छी आदतें हो गयी थी उठते ही संता को प्रणाम करना 
और फिर सभी रामस्नेही लोगों को राम जी राम बोलना :-)
अब लगता हैं अपने भगवानजी के लिए भी एक स्पेशल ब्लॉग होना चाहिए :-)
बस थोड़ा और इंतज़ार…………
जितनी ख़ुशी मिली रामसभा में उससे कहीं ज्यादा सकून भी 
पापाजी थैंक यू :-)
यकीं मान लीजिए सबसे बेस्ट शरण बस केवल परम पिता परमेश्वर की ही होती हैं :-)

3 comments:

दिगम्बर नासवा said...

परम पिता परमेश्वर हों तो दुसरे कि क्या जरूरत ... रोचक है आपका अंदाज़ लिखने का ....

Kailash Sharma said...

भगवान की शरण से बेहतर और क्या होगा...बहुत प्रभावी और मनभावन प्रस्तुति...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह... उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@भूली हुई यादों
नयी पोस्ट@भजन-जय जय जय हे दुर्गे देवी