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Tuesday 3 September 2013

मेरी डायरी -मजबूरी ;-))

एक नन्हीं सी कली धरती पर खिली जब तक कली
ये डाली से लिपटी रही
आँचल में मुँह छिपाकर दूध पीती रही
फिर लोग कहने लगे परायी हैं ,परायी हैं
फूल बनी धागे में पिरोयी गयी
किसी के गले में हार बनते ही टूट कर
बिखर गयी
ताने सुनाये गए देहज में क्या लायी हैं  ????

पैरों से रोंदी गयी
सोफा मार कर घर से निकाली गयी
कानून और समाज से न्याय मांगती रही
अनसुनी कर उसकी बातें धज्जियाँ उड़ाई गयी
अन्त में कर ली उसने आत्म हत्या
दूनिया से मुँह मोड़ लिया
"वह थी एक गरीब 
माँ-बाप की बेटी :-))"
जस्ट हेट टू दिस ट्रेडिशन्स और ऑल्सो टू दिस सोसाइटी :-))

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