फ़िल्में देखते रहना चाहिए...मन भी बहल जाता हैं और कभी-कभी कोई अच्छा सन्देश भी दे जाती हैं कुछ फ़िल्में....
अभी इस वक़्त में शायद फ़िल्में बनाने का महज उद्देश्य बस पैसा कमाना ही रह गया हैं फिर भी कुछ लोग महज कम बजट में अच्छी फ़िल्में दें रहे हैं वो तारीफ के काबिल हैं....अभी बीते रोज मैंने देखि "निल बट्टे सन्नाटा"....पहली दफ़ा तो नाम ही बड़ा अजीब लगा था....आज तक निल बट्टा जीरो जरुर सुना था पर पहली दफ़ा था जब निल बट्टे सन्नाटा से रूबरू हो रहे थे....फिल्म के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...डायरेक्टर व प्रोडूसर ने कम वक़्त में बेहद शानदार फिल्म बनाई हैं, स्वरा भास्कर ने अपना किरदार बखूबी निभाया हैं....हर आम इन्सान चाहे तो फिल्म के हर पहलु को अपनी ज़िन्दगी से जोड़ सकता हैं....एक माँ अपनी बेटी के लिए इसलिए भी खूब मेहनत करती हैं ताकि उसकी बेटी कोई सपना देख सकें....ताकि उसकी बेटी बाई ना बनें....एक बाई की बेटी का आखिर में अपनी माँ का सपना सच करना व कलेक्टर बनना तो आँखों को नम कर दें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए....
इस फिल्म में एक मालकिन व बाई के बिच के रिश्ते को जैसे पेश किया गया हैं वो दिल छू लेने वाला हैं....इतना अपनापन व इतना प्यार तो सगे-सम्बन्धियों के बिच भी नहीं होता होगा आजकल पर फिल्म में एक मालकिन बाई की मदद करने के लिए हर संभव कोशिश करती हैं व उसके उलझन को सुलझाने को हमेशा तैयार होती हैं....फिल्म में कहीं नजर नहीं आता हैं कि मालकिन बाई को औछ्ची नजरों से देखती हो....
एक नादान बच्ची व माँ का रिश्ता....जैसे आम से घरों में होते हैं उतनी ही खूबसूरती से पेश किया गया हैं....फिल्म करीब 97मिनट की हैं एक पल को भी बिल्कुल भी उबाऊ नहीं लगती हैं....पहली बार बेमतलब सी कोशिश कर रहे हैं फिल्म की समीक्षा करने की....कोई भूल-चुक हो तो माफ़ करज्यो सा...!!
बस हमारी पोस्ट यहीं खत्म हुई....मन करें तो जरुर देखिए एक बार यह आम सी खास फिल्म...
अभी इस वक़्त में शायद फ़िल्में बनाने का महज उद्देश्य बस पैसा कमाना ही रह गया हैं फिर भी कुछ लोग महज कम बजट में अच्छी फ़िल्में दें रहे हैं वो तारीफ के काबिल हैं....अभी बीते रोज मैंने देखि "निल बट्टे सन्नाटा"....पहली दफ़ा तो नाम ही बड़ा अजीब लगा था....आज तक निल बट्टा जीरो जरुर सुना था पर पहली दफ़ा था जब निल बट्टे सन्नाटा से रूबरू हो रहे थे....फिल्म के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...डायरेक्टर व प्रोडूसर ने कम वक़्त में बेहद शानदार फिल्म बनाई हैं, स्वरा भास्कर ने अपना किरदार बखूबी निभाया हैं....हर आम इन्सान चाहे तो फिल्म के हर पहलु को अपनी ज़िन्दगी से जोड़ सकता हैं....एक माँ अपनी बेटी के लिए इसलिए भी खूब मेहनत करती हैं ताकि उसकी बेटी कोई सपना देख सकें....ताकि उसकी बेटी बाई ना बनें....एक बाई की बेटी का आखिर में अपनी माँ का सपना सच करना व कलेक्टर बनना तो आँखों को नम कर दें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए....
इस फिल्म में एक मालकिन व बाई के बिच के रिश्ते को जैसे पेश किया गया हैं वो दिल छू लेने वाला हैं....इतना अपनापन व इतना प्यार तो सगे-सम्बन्धियों के बिच भी नहीं होता होगा आजकल पर फिल्म में एक मालकिन बाई की मदद करने के लिए हर संभव कोशिश करती हैं व उसके उलझन को सुलझाने को हमेशा तैयार होती हैं....फिल्म में कहीं नजर नहीं आता हैं कि मालकिन बाई को औछ्ची नजरों से देखती हो....
एक नादान बच्ची व माँ का रिश्ता....जैसे आम से घरों में होते हैं उतनी ही खूबसूरती से पेश किया गया हैं....फिल्म करीब 97मिनट की हैं एक पल को भी बिल्कुल भी उबाऊ नहीं लगती हैं....पहली बार बेमतलब सी कोशिश कर रहे हैं फिल्म की समीक्षा करने की....कोई भूल-चुक हो तो माफ़ करज्यो सा...!!
बस हमारी पोस्ट यहीं खत्म हुई....मन करें तो जरुर देखिए एक बार यह आम सी खास फिल्म...
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