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Sunday 13 March 2016

"एक लड़की की डायरी-1"

ऐसा नहीं हैं कि मैं जन्म लेते ही लड़की होती हूँ, नहीं मेरा जन्म तो एक इन्सान के रुप में ही होता हैं पर मुझे एक नजर देखते ही इस दुनिया के लोग एक पल में मुझे लड़की का नाम दे देते हैं, यहीं से शुरू होता हैं लड़के व लड़की का गेम!!!
यह दोगलापन फिर मेरी मृत्यु तक हमेशा बना रहता हैं, यहाँ तक कि मेरे मर जाने पर भी मेरे दिनों का खेल भी मेरे पति से जुड़ा रहता हैं, इस जन्म से मृत्यु के बीच मैं इस दलदल में इतना फस जाती हूँ कि मुझे स्वयं भी याद नहीं रहता हैं कि मैं लड़की से परे एक इन्सान भी हूँ, मेरी भी एक ज़िन्दगी हैं....इस सफ़र में सिवा रस्मों व रीति-रिवाजों के मेरा कुछ नहीं होता हैं, जो मुझे मिलती हैं निभाने को, ढोने को...!!!
पढ़िए औरों को भी पढ़ाईये....चलते हैं कुछ दिन साथ-2....जीते हैं एक लड़की को...!!!
क्रमश:......!!!!

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