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Friday 4 July 2014

पुराना सा शहर:-)

 कई मिलों की दूरी भी हम केवल तभी तय कर पाते हैं 
जब आगे बढ़ने के लिए हम पहला कदम बढ़ा पाते हैं :-)
इस बार तय कर लिया था मैंने सब-कुछ, बढ़ा-घटाकर भी फायदा अपना सोच लिया था :(
एक जुलाई को मैंने अपना पहला कदम बढ़ा दिया था "जोधपुर" की तरफ :-)
मन में आंशका व डर था फिर से वहाँ जाऊ या नहीं 
पर इस बार इरादा पक्का था इसलिए मेरे हर कदम के साथ 
मेरे और उस पुराने से शहर के बीच दूरियाँ कम होती जा रही थी :-)
उस शहर से मुझे बहुत सारे गीले-शिकवे थे 
मैं वहाँ फाइनल ईयर के बाद दोबारा कभी नहीं जाना चाहती थी 
पर दो साल के फ़ासलें ने सब पुरानी यादें व बातें भुला दी :-)
मैंने राई का बाघ पहुँचते ही एक नजर कमला नेहरू कॉलेज पर डाली 
फिर प्यार भरी स्माइल के साथ कॉलेज को मन ही मन थैंक्यू कहा :-)
चारों तरफ अपनी नजरें गुमायी, मुझे हर पुरानी सी चीज़ बिल्कुल नयी सी लग रही थी 
कि तभी फ़ोन बजा ओहो सुनीता का कॉल था 
हैलो सारी पहुँच गयी क्या ??
हां पहुंच गयी अब तेरे घर मैं अकेले नहीं आउगी तू लेने आ मुझे :-)
यार मुझे कुछ काम हैं तू अकेले ही आ जाना (मूवी देखने का काम lol:-)
मैंने अनमने से कह दिया ओके मैं अकेले आ जाऊगी :(
चौराहे पर पहुंचकर देखा मैडम को मेरी कोई फ़िक्र ही नहीं हैं 
बस दो लड़कियों के साथ बातें करने में मशगूल हैं 
अबे मेरी तरफ भी देख तो जरा 
ओहो सॉरी यार, हम्म बिना कोई फॉर्मेलिटी किये हम घर पहुँचे !!
बैग्स रखने के बाद उसने मुझे पानी की बोतल लाकर दी 
मैं दो बून्द पानी पीते हुए सोच ही रही थी कि अब मुझे सुनीता से गले मिलना चाहिए 
कि मेरे बोतल रखते ही वो मेरे करीब आई तथा थोड़ी आगे मैं बढ़ गयी थी 
हमारे बीच कोई दुश्मनी नहीं थी फिर भी फाइनल ईयर में कुछ दूरियां बढ़ गयी थी 
पर अब सारे गीले-शिकवे दूर हो गए व दूरियां मिट चुकी थी 
उस वक़्त हमें सॉरी बोलने व अफ़सोस जताने की कोई जरुरत नहीं थी :-)
अब तीनों एस में से एक एस की अभी भी कमी थी सोनू उर्फ़ गीत की :-)
बहुत याद आई यार गीत तेरी भी अब तू भी जल्दी आ जाना :-)
लोग सही ही कहते हैं कुछ बातें किस्मत ही तय करती हैं 
मुझे गणेश डूंगरी या गणेश मंदिर (जी टी) जाने का ना ही हमेशा से शौक रहा हैं 
और ना जोधपुर में गुमने की मेरी लिस्ट की पसंदीदा जगहों में यह शामिल हैं 
फिर भी बुधवार को मेरी किस्मत ले ही गयी मुझे वहाँ 
मैंने सुनीता को कहा मैं बहुत हद तक बदल गयी हू 
फिर भी पहाड़ियों पर घूमने का शौक आज तक नहीं छूटा हैं 
गणेश मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने से पहले एक नजर वहाँ डाली जिस जगह को समतल किया जा रहा हैं 
केदारनाथ की याद आ गयी खैर मन ही मन सबको सलामत रखने की दुआ की मैंने :-)
फिर मैंने सुनीता से कहा मैं इस शहर को एक बार जी भरके देख लेना चाहती हू !!
मैंने एक नजर चारों तरफ डाली फिर प्यार से मसुरियां की पहाड़ी को निहारा 
एक नजर मेहरानगढ़ व जसवंतड़ा को भी ताका :-)
उम्मैद पैलेस को भी निहार लिया 
फिर मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा नेक्स्ट टाइम जब भी ब्लॉग पर पोस्ट लिखुंगी तो 
सबसे पहले "पुराना सा शहर" टाइटल की पोस्ट लिखुंगी 
उसने बस केवल वाओ कहा मैं मुस्कुरा दी :-)
फाइनली मैंने बोला अब चलते हैं मंदिर की तरफ वरना गणेश जी नाराज हो गए 
तो शिवजी के पास भी चलना पड़ेगा 
मौसम ठीक था या फिर कोई और वजह थी पता नहीं पर दिन में भी मंदिर काफी लोग आ रहे थे 
मंदिर में हम पांच मिनट बैठ गए वो थोड़ी शांति मिलती हैं ना सो :-)
पहाड़ियों पर घूमने का मन था पर पता नहीं क्यों शायद फिर से वो किस्मत वाली 
बात लागू हो गयी होगी सो नहीं घूम पाये :-)
फिर घर पहुँचते ही सुनीता ने भैया से ज़िद्द की कि हमारी फोटो लो 
क्या करें कहना तो मानना ही पड़ता हैं हम्म :-)
इस बार यह शहर मुझे बिल्कुल अपना सा लग रहा हैं 
बहूत नया सा लग रहा हैं यह शहर मुझे 
शायद ज़माने के साथ-२ यह भी मॉडर्न हो गया हैं जी :-)
आफ्टर ऑल अब यही शहर ही तो हैं मेरी दुनिया कब तक यह नहीं पता :(
थैंक्यू भगवानजी !!!

ओहो हां याद आया कल बच्ची(मतलब मेरा) का जन्मदिन हैं
हम्म देखते हैं किसकी-२ दुआएं व आशीर्वाद मिलता हैं :-)
HAPPY BIRTHDAY TO ME...IN ADVACE:-)
ALSO GOD bless me:)शुक्रिया ओ मेरे खुदा !!

5 comments:

Kailash Sharma said...

पुरानी यादों की गलियों में घूमना कभी बहुत अच्छा लगता है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...जन्मदिन की अग्रिम हार्दिक शुभकामनायें!

Yashwant R. B. Mathur said...

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ !


सादर

दिगम्बर नासवा said...

अक्सर समय बीत जाने पर कडवी यादों का याद न रहना अच्छा ही है ... और जहां समय बिताया हो उसकी यादें तो रहती ही हैं मन में ...

दिगम्बर नासवा said...

जनम दिन की बधाई औएर शुभकामनायें ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बेहद उम्दा और बेहतरीन
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ