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Wednesday, 13 November 2013

गुजारा :-))

जिंदगी बस तेरी छाम में गुजरी
बराबर दर्द और आह में गुजरी
एहसान से उन्हें निभाने में गूजरी
उम्र सारी गुनाह में गुजरी
है यह जिंदगी की हर एक घड़ी
जो तेरे दिल-ओ-गाह में गूजरी
सबकी नजरों में अपनापन था
जब तक उनकी निगाह में गूजरी
मैं एक मुहब्बत की राही हू
जिसकी मंज़िल भी राह में गुजरी
एक ख़ुशी हमने दिल से चाही थी
वो भी गम की पनाह में गूजरी
जिंदगी अपनी ये ए-प्रीतम
अब तक रस्म रिवाजों की कड़वाहट में गूजरी :-))


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