हूह.… लोग कैसे सारी उम्र बिता देते हैं
बिना कुछ किये मैं समझ नहीं पाती हू
अब यह तो खुदा ही जाने की वो वक़्त या हालातों के मारे होते हैं
या लाचारी, बेबसी,आदत और मज़बूरी के.…
हां वक़्त के साथ विचार बदलते रहते हैं मानती हू मैं
अब देखो ना मुझे हमेशा बेबस और लाचारी पर तरस आ जाता हैं
पर आज मुझे अपने ही दिल के जज्बातों पर गुस्सा आ रहा हैं
"इंसान कितना दोगला होता हैं यह मेरी समझ से परे हैं
सच गिरगिट तो बेचारा यू ही बदनाम हैं
उससे ज्यादा रंग तो इस दूनिया के लोग भी बदल लेते हैं
और वो भी बहुत अच्छे से, फिर ओढ़ लेते हैं शराफत का लबादा उस चेहरे पे"
फालतू बैठे लोगों को और कुछ सुझा नहीं तो
देखो कैसे वो ताश के पत्तों में अपना भविष्य ढूंढ रहे हैं
उन्हें खेलता हुआ और इन 52 पतों में उनके दिमाग के पेच
लड़ाते हुए देखों तो जरुर लगेगा कि बचपन में उन्होंने जरुर
किसी क्लास में गणित में टॉप किया होगा :-)
हां हो सकता हैं उनमें से बहुत से लोग बाजार से किराणा
का सामान खरीदते हुए कितने पैसे हुए यह भी सही से जोड़ ना पाए !!!!
देखो वो अंकल तो ताश के पते ना मिलने पर पत्थर वाले खेल में ही खुश हैं
ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जायेंगे आप घर से बहार निकलेंगे
तो आपको लोगों के वक़्त बर्बाद करने के
और फिर अपनी गरीबी, असफलताओं, मज़बूरी, लाचारी का
दोष मढ़ दिया जाता हैं इन्हीं पतों के सर
अच्छा पहनाया हैं खुदा ने अमलीजामा तो :(
अब मुझे भी तो देखो ना
यू ही खामखां-बेवजह दूसरों से परेशां होकर लिखने लग जाती हू
और मेरे अपने कहते हैं कि इस कलम को बेवजह घसीटने में कुछ नहीं रखा
मैं वक़्त बर्बाद कर रही हू इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला
यह सब बेमतलब हैं ,कलम चलाना बहूत आसान हैं
कोई भी लिख ले पर कोई बदलाव कर पाना बेहद मुश्किल हैं !!!!
बाबा हमको कहाँ हैं दूनिया की फिकर हम तो बस मारे हैं इस बेजान से दिल के
हूह.… खैर फिर भी मुझे मेरा लिखना सार्थक लग रहा हैं
मुझे यह वक़्त की बर्बादी का बहाना नहीं लग रहा हैं
बल्कि मुझे तो ऐसा लग रहा हैं जैसे कि
मैं तो अपने भविष्य की इबारत लिख रही हू :-)
"क्यूंकि यह काम मैं कर रही हू और
मुझे मेरा किया हुआ अपना ही कोई काम भला बूरा लग सकता हैं क्या ???"
बिना कुछ किये मैं समझ नहीं पाती हू
अब यह तो खुदा ही जाने की वो वक़्त या हालातों के मारे होते हैं
या लाचारी, बेबसी,आदत और मज़बूरी के.…
हां वक़्त के साथ विचार बदलते रहते हैं मानती हू मैं
अब देखो ना मुझे हमेशा बेबस और लाचारी पर तरस आ जाता हैं
पर आज मुझे अपने ही दिल के जज्बातों पर गुस्सा आ रहा हैं
"इंसान कितना दोगला होता हैं यह मेरी समझ से परे हैं
सच गिरगिट तो बेचारा यू ही बदनाम हैं
उससे ज्यादा रंग तो इस दूनिया के लोग भी बदल लेते हैं
और वो भी बहुत अच्छे से, फिर ओढ़ लेते हैं शराफत का लबादा उस चेहरे पे"
फालतू बैठे लोगों को और कुछ सुझा नहीं तो
देखो कैसे वो ताश के पत्तों में अपना भविष्य ढूंढ रहे हैं
उन्हें खेलता हुआ और इन 52 पतों में उनके दिमाग के पेच
लड़ाते हुए देखों तो जरुर लगेगा कि बचपन में उन्होंने जरुर
किसी क्लास में गणित में टॉप किया होगा :-)
हां हो सकता हैं उनमें से बहुत से लोग बाजार से किराणा
का सामान खरीदते हुए कितने पैसे हुए यह भी सही से जोड़ ना पाए !!!!
देखो वो अंकल तो ताश के पते ना मिलने पर पत्थर वाले खेल में ही खुश हैं
ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जायेंगे आप घर से बहार निकलेंगे
तो आपको लोगों के वक़्त बर्बाद करने के
और फिर अपनी गरीबी, असफलताओं, मज़बूरी, लाचारी का
दोष मढ़ दिया जाता हैं इन्हीं पतों के सर
अच्छा पहनाया हैं खुदा ने अमलीजामा तो :(
अब मुझे भी तो देखो ना
यू ही खामखां-बेवजह दूसरों से परेशां होकर लिखने लग जाती हू
और मेरे अपने कहते हैं कि इस कलम को बेवजह घसीटने में कुछ नहीं रखा
मैं वक़्त बर्बाद कर रही हू इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला
यह सब बेमतलब हैं ,कलम चलाना बहूत आसान हैं
कोई भी लिख ले पर कोई बदलाव कर पाना बेहद मुश्किल हैं !!!!
बाबा हमको कहाँ हैं दूनिया की फिकर हम तो बस मारे हैं इस बेजान से दिल के
हूह.… खैर फिर भी मुझे मेरा लिखना सार्थक लग रहा हैं
मुझे यह वक़्त की बर्बादी का बहाना नहीं लग रहा हैं
बल्कि मुझे तो ऐसा लग रहा हैं जैसे कि
मैं तो अपने भविष्य की इबारत लिख रही हू :-)
"क्यूंकि यह काम मैं कर रही हू और
मुझे मेरा किया हुआ अपना ही कोई काम भला बूरा लग सकता हैं क्या ???"
7 comments:
यू ही खामखां-बेवजह दूसरों से परेशां होकर लिखने लग जाती हू
और मेरे अपने कहते हैं कि इस कलम को बेवजह घसीटने में कुछ नहीं रखा
मैं वक़्त बर्बाद कर रही हू इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला
कहने दीजिये दूसरों को। डायरी (और आज के दौर मे ब्लॉग) आपका सच्चा दोस्त है। इसलिए जी भर कर लिखिए और वह लिखिए जो सच मे आपका मन कहता है।
हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
G sahi kaha aapne...
lot of thanks....:-)
G sahi kaha aapne...
lot of thanks....:-)
आपकी लिखी रचना बुधवार 22/01/2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
G thank you..:-)
G jarur aaugi.....!!!!
"सच गिरगिट तो बेचारा यू ही बदनाम हैं
उससे ज्यादा रंग तो इस दूनिया के लोग भी बदल लेते हैं l"
गज़ब की सोच है आपकी l और लिखते रहियेगा l
G bahut-2 aabhar sir.......:-)
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