एक चिड़िया थी, अपने पापा की परी व माँ की प्यारी, सबका ख्याल रखती थी वो भी, बचपन में बहुतों ने जाने-अनजाने में बहुत कोशिश की उसे खा जाने की, नादान और शायद किस्मत की भी अच्छी दोस्त थी वो इसलिए हमेशा उसका घोंसला सही-सलामत ही रहता, फिर उसे सबने उड़ने की इजाजत दी बरसों तक वो अकेली ही अपनी दम पर उड़ती रही, कभी गिर भी जाती तो फिर संभल जाती, फिर एक दिन उससे कहा गया अब उड़ना बहुत हुआ, किसी एक घोसलें में कैद हो जाओ, वो दुखी सी रहने लगी एक दिन उसका सबसे प्यारा दोस्त आया उसने जाना उसकी कहानी को फिर कहा नहीं नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता, तुम तो बनी ही उड़ने के लिए हो भला तुम्हें कोई कैद करके क्यों रखें, तुम स्वतंत्र हो तुम्हें जीने का पूरा अधिकार मिलना चाहिए, तुम बरसों तक आजाद रही हो अब एकदम से अगर तुम्हें किसी कैदखाने में डाल दिया जाए तो तुम्हारी तो मृत्यु निश्चित ही हैं, फिर उसी ने एक निर्णय सुनाया जहाँ हमारे अधिकारों से हमें महरूम रखा जाए वो घोंसला हमारे लिए नहीं हैं!!!
फिर उसने कहा लोगों का काम लोगों को करने देना और तुम अपनी बाहों को हवा में फैलाकर खूब उड़ना और गगन की उचाईयों को छूना....तब से सुना हैं वो चिड़िया फिर से खुश रहने लगी हैं, जीने लगी हैं!!
2 comments:
वैसे किसी लड़की की डायरी में ताक-झांक अच्छी बात नहीं
लेकिन
अचानक डायरी हाथ लग गई तो ख़ुद को रोक नहीं पाया
बहुत रोचक है
इस पन्ने के अलावा बाकी पन्ने पढ़ने के लिए फिर आना पड़ेगा
सुंदर लेखनी को बार बार बधाई और बहुत सारी शुभकामनाएं
Thank u so much sir😊
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