आज मेरे पास कुछ खाश विचार नहीं थे और
लिखने का भी कोई इरादा नहीं था पर अभी कुछ देर पहले ही
देखें गए एक दृश्य ने मुझे ऐसा कुछ लिखने को मजबूर कर दिया :-)
एक चीज़ तो बच्चें लाड़-प्यार से अच्छे नहीं बनते हैं
उन्हें अच्छा तो बेशक अनुशासन ही बनाता हैं
अफ़सोस मेरे पास अनुशासन नाम की कोई चीज़ हैं ही नहीं !!!
आज एक गाने के बोल याद आ गए -
बच्चों का क्या हैं बच्चे तो आखिर बच्चें हैं
समझा दो, बहला दो…………
पर मैं भी अभी तक बच्ची ही समझती आई हू अपने आपको
बेशक इसकी बहुत बड़ी वजह जिम्मेदारियों से डरना भी हो सकती हैं
खैर बचपन बिल्कुल पानी के जैसा ही होता हैं
जिस साँचे में डाला जाएगा वो उसी का ही रूप ले लेगा
हम ही हैं वो लोग जो बच्चों के गलत करने पर भी उन्हें गले से लगाते हैं
दूसरे बच्चों के बेकसूर होने पर भी अपने बच्चों को
सच्चा व अच्छा साबित करने की कोशिश करने वाले भी हम ही होते हैं
हम ही परिवारों का बंटवारा करके उन्हें सिखाते हैं बिखेरना
बच्चा बिल्कुल शांत सा बैठा बस एकटक देखता रहता हैं अपने परिवार को टूटता
हम ही हैं जो उन्हें धर्म व मजहब का पाठ पढ़ाते हैं
हम ही हैं जो उन्हें केवल पत्थर की मूर्ति में भगवान के होने का हवाला देते हैं
हम ही हैं जो उन्हें अमीर गरीब का भेद बताते हैं
हम ही हैं जो उन्हें संस्कारों से इतर महज हक़ व अधिकारों का पाठ पढ़ाते हैं
हम ही हैं जो उन्हें रियलिटी शोज में भेजकर उनके द्वारा अनाप-शनाप
व बेमतलब बोले जाने पर भी उन्हें तालियां बजाकर कहते हैं बहुत अच्छा :-)
हम ही हैं जो उन्हें यह सिखाते हैं कि हम जो भी करें वो सब जायज हैं
बहुत कुछ इंडिया में हो रहा हैं जो भारत में कभी नहीं होता था
बेशक भारत बेहद अच्छा व संस्कारित देश था
फिर भी कहते हैं इंडिया बहुत प्रगति कर रहा हैं
उफ़ यहाँ इंडिया में तो लड़कियों के कपड़े भी बहस का विषय बन जाते हैं
भारत में बच्चों को शीला की जवानी या मुन्नी बदनाम हुई देखने को नहीं मिलती थी
उस वक़्त बच्चों को रामायण-महाभारत दिखाई जाती थी
बच्चों को हक़ व अधिकार नहीं विरासत में संस्कार मिलते थे
शराब नहीं मिलती थी पिने को आजकल तो बाप-बेटे साथ में बैठकर पीते हैं जी
लड़कियों को बहन व माता जैसे शब्दों से सम्बोधित किया जाता था
भारत इंडिया बनते-२ बेशक अपनी पहचान खो चूका हैं
हम अमेरिका व इंग्लैंड की बराबरी कर पाएंगे या नहीं पता नहीं
पर बेशक हम आने वाली पीढ़ी को प्रगति का ऐसा पाठ पढ़ाने की कोशिश जरूर कर रहे हैं
जिसका मूल ध्येय सफलता और वो ना मिले तो बेशक आत्महत्या
इसमें कोई दोराय नहीं कि शादी सबको महज बंधन ही नजर आएगी
(बेशक मुझे तो अभी भी लगता हैं हम्म )
उफ़ फिर से दिमाग में जंग लग गयी
कहना यह था कि अगर हम समाज से वाकई बुराइयों को मिटाना चाहते हैं
तो हमें बच्चों के बचपन को अच्छाई के रंग में रंगना ही होगा :-)
लिखने का भी कोई इरादा नहीं था पर अभी कुछ देर पहले ही
देखें गए एक दृश्य ने मुझे ऐसा कुछ लिखने को मजबूर कर दिया :-)
एक चीज़ तो बच्चें लाड़-प्यार से अच्छे नहीं बनते हैं
उन्हें अच्छा तो बेशक अनुशासन ही बनाता हैं
अफ़सोस मेरे पास अनुशासन नाम की कोई चीज़ हैं ही नहीं !!!
आज एक गाने के बोल याद आ गए -
बच्चों का क्या हैं बच्चे तो आखिर बच्चें हैं
समझा दो, बहला दो…………
पर मैं भी अभी तक बच्ची ही समझती आई हू अपने आपको
बेशक इसकी बहुत बड़ी वजह जिम्मेदारियों से डरना भी हो सकती हैं
खैर बचपन बिल्कुल पानी के जैसा ही होता हैं
जिस साँचे में डाला जाएगा वो उसी का ही रूप ले लेगा
हम ही हैं वो लोग जो बच्चों के गलत करने पर भी उन्हें गले से लगाते हैं
दूसरे बच्चों के बेकसूर होने पर भी अपने बच्चों को
सच्चा व अच्छा साबित करने की कोशिश करने वाले भी हम ही होते हैं
हम ही परिवारों का बंटवारा करके उन्हें सिखाते हैं बिखेरना
बच्चा बिल्कुल शांत सा बैठा बस एकटक देखता रहता हैं अपने परिवार को टूटता
हम ही हैं जो उन्हें धर्म व मजहब का पाठ पढ़ाते हैं
हम ही हैं जो उन्हें केवल पत्थर की मूर्ति में भगवान के होने का हवाला देते हैं
हम ही हैं जो उन्हें अमीर गरीब का भेद बताते हैं
हम ही हैं जो उन्हें संस्कारों से इतर महज हक़ व अधिकारों का पाठ पढ़ाते हैं
हम ही हैं जो उन्हें रियलिटी शोज में भेजकर उनके द्वारा अनाप-शनाप
व बेमतलब बोले जाने पर भी उन्हें तालियां बजाकर कहते हैं बहुत अच्छा :-)
हम ही हैं जो उन्हें यह सिखाते हैं कि हम जो भी करें वो सब जायज हैं
बहुत कुछ इंडिया में हो रहा हैं जो भारत में कभी नहीं होता था
बेशक भारत बेहद अच्छा व संस्कारित देश था
फिर भी कहते हैं इंडिया बहुत प्रगति कर रहा हैं
उफ़ यहाँ इंडिया में तो लड़कियों के कपड़े भी बहस का विषय बन जाते हैं
भारत में बच्चों को शीला की जवानी या मुन्नी बदनाम हुई देखने को नहीं मिलती थी
उस वक़्त बच्चों को रामायण-महाभारत दिखाई जाती थी
बच्चों को हक़ व अधिकार नहीं विरासत में संस्कार मिलते थे
शराब नहीं मिलती थी पिने को आजकल तो बाप-बेटे साथ में बैठकर पीते हैं जी
लड़कियों को बहन व माता जैसे शब्दों से सम्बोधित किया जाता था
भारत इंडिया बनते-२ बेशक अपनी पहचान खो चूका हैं
हम अमेरिका व इंग्लैंड की बराबरी कर पाएंगे या नहीं पता नहीं
पर बेशक हम आने वाली पीढ़ी को प्रगति का ऐसा पाठ पढ़ाने की कोशिश जरूर कर रहे हैं
जिसका मूल ध्येय सफलता और वो ना मिले तो बेशक आत्महत्या
इसमें कोई दोराय नहीं कि शादी सबको महज बंधन ही नजर आएगी
(बेशक मुझे तो अभी भी लगता हैं हम्म )
उफ़ फिर से दिमाग में जंग लग गयी
कहना यह था कि अगर हम समाज से वाकई बुराइयों को मिटाना चाहते हैं
तो हमें बच्चों के बचपन को अच्छाई के रंग में रंगना ही होगा :-)
6 comments:
सही कहा। बच्चे तो निश्छल होते हैं। उन्हें ऊंच-नीच,जात-पात आदि से कोई मतलब नहीं होता। उनके सम्पूर्ण विकास के लिए यह आवश्यक है कि घर और स्कूल से ही उन्हें इंसानियत की शिक्षा दी जाए जो निश्चित ही आगे भी उनके काम आएगी।
सादर
काश इंसान उम्र भर बच्चा बना रह सके ...
वैसे जितना हो सके बच्चा मबे रहने का प्रयास तो करना ही चाहिए और वो भी मन से ... अच्छी पोस्ट ...
बचपन की बराबरी हो नहीं सकती |तभी तो हर व्यक्ति उसे बहुत याद करता है |
बहुत कुछ जो नहीं होना चाहिए वह आज समाज में दीखता है तो मन दुखी होता है.. काश बच्चों के बचपन से बड़ों का दिल भी होता। . बपचन जैसा निष्कपट आपसी प्यार, मेल मिलाप फिर कभी देखने को नहीं मिलता तभी तो बचपन याद आता है
सही कहा।
बचपन को केवल बचपन रहने दें और उसे दूषित न करें यही बच्चों के लिए बेहतर है...बहुत सार्थक चिंतन...
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