प्रकृति का नियम हैं अगर किसी चीज़ को नकारा जायेगा तो वो फिर से अपना अस्तित्व पाने के लिए फिर से अपना कोई नया या पुराना रूप लेगी...होता हैं यूँ मेरे ख्याल से तो खेर मुझे लिखने का शौक कब से हैं, शायद मुझे खुद नहीं पता, क्यों हैं इसकी भी ठीक-ठीक कोई वजह भी नहीं हैं क्यूंकि मेरे परिवार के सदस्यों में से आज तक तो किसी ने लिखा नहीं हैं हां थोड़ा बहुत शौक रहा था बचपन में मेरे पिताजी को और शायद तब उन्होंने कुछ कुछ लिखा भी था पर एक अरसे बाद चीजें, अल्फाज़ सब भुला दिए जाते हैं, हां तो बस शौक रहा, पैशन रहा, लिखना वो चीज़ हैं जिसके लिए हमेशा पागल रही, बचपन से आज तक ना जाने कहाँ-कहाँ लिखकर रखा हुआ हैं, कुछ डायरियां कैद पड़ी हैं, कुछ सपने छुपा रखें हैं, कुछ अनकही सी बातें दबा रखी हैं, और पुरानी यादों को मैंने अब पुराना ही रहने दिया हैं और उनकी चाबी कहीं खो दी हैं....डायरी हमेशा से जीवन का एक अहम् हिस्सा रही कॉलेज तक हमेशा लिखना जरुरी था, फिर फेसबुक का आगमन हुआ हमारी दुनिया और ऐसे ही ब्लॉग का भी (www.meraapnasapna.blogspot.com) हमने दोनों जगह का भरपूर उपयोग किया, हमने बेशुमार लिखा ऑनलाइन की दुनिया में खूब लोगों तक चर्चे पहुंचें हमारे, अपनों को भी खबर हुई कि लिखते भी हैं हम, मेरे पिताजी से अब लोग मिलते तो कहने लगे थारी बाया लिखें छोको हैं!! :)😍
माँ से कुछ कह भी देते ओ हो लिखती हैं वो...सबको अच्छा बताती हैं पर वो कब से अच्छे थे पर मेरे माँ तो हैं ही बेहद निराले व प्यारे...हंसकर कह देते हैं लाडली हैं मेरी जो मन कर दें लिख दिया प्रॉब्लम क्या हैं आखिर कुछ कर ही रही हैं...तो कोई अपनी सोच दर्शाने को कह ही देती हैं कभी-कभी कि थारी छोरी लिखें दहेज़ नी देवड़ो बणी हैं समाजसेवक....हहाह्हाहाहा...वो माँ हैं मेरे बेहद प्यार करते हैं मुझसे कभी लिखने के लिए मना नहीं किया...मेरी भावनाओं को समझा जब भी पेपर लाके रखा उनके सामने ख़ुशी से बोलें बेटी छपी हैं काई म्हारी...काई लिख्यो हैं दका पढर सुणा तो...बहुत बार सुनाया हैं कभी कभी नहीं भी...होता हैं ज़िन्दगी में यूँ भी जब हम अपनी जिद्द में रिश्तों को हार रहे होते हैं तो दुनिया का सारा ज्ञान कम पड़ता हैं...लिखती जा रही हूँ कि पोस्ट बड़ी होती जा रही हैं....एक्चुअली पिछले कुछ दिनों से ख्याल आ रहा हैं कि लिखना अलग और जीवन में सारी बातों को प्रयोग में लेना अपनी जगह और सोशल मीडिया के अपने फायदे-नुकसान हैं, कोई यूँ ना सोचें यूँ कितना ज्ञान देती रहती हैं जबकि खुद में झांको तो सारी बुराइयाँ भरी पड़ी हैं बस ऐसे ही कुछ ख्याल आ रहें तो यहाँ कम ही लिखने का सोच रहें हैं और यहाँ लिखने का एक भारी नुकसान हुआ पिछले कुछ सालों से डायरी लिखना भूल गए जबकि उसके अपने फायदे थे वहां कोई आपको जज नहीं करता आप अपनी कहानी के डायरेक्टर, प्रोडूसर व एक्टर सब खुद ही होते हैं और वहीँ बेस्ट निखरकर सामने आते हैं, अभी पिछले दिनों एक दिन मुझे रात को नींद नहीं आ रही थी मन बार-बार बैचैन हो रहा था मैंने करीब तीन बजे अपनी 2012 की डायरी निकाली(डायरी में नहीं लिखने की वजह से अभी भी कुछ पन्ने खाली पड़े हैं तो वक़्त-बेवक्त उसका यूज़ करती हूँ) मैंने देखा मैंने 23rd अक्टूबर 2016 को एक पन्ना लिखा था उसके बाद 2017 की उसमें कोई एंट्री नहीं थी मतलब मैंने डायरी को नया साल तक विश नहीं किया था!! :(
मैंने कुछ लफ्ज़ लिखें उसमें, कुछ देर चुपचाप बैठी रही, मतलब मुझे उस वक़्त सबसे ज्यादा सुकून मेरी डायरी दें रही थी, मैंने फेसबुक, अपने स्मार्टफोन सबको परे रखकर अपनी पुरानी डायरी को चुना....आज से फिर मैं अपनी डायरी की और रुख कर रही हूँ अब नयी खरीदने जा रही हूँ जल्द ही 2017 की...उसीमें लिखूंगी आपकी, मेरी, सबकी कहानियां!! :) 😍😘